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फोटो खिंचवाते वक़्त मैं अक्सर...मुस्कुरा लिया करता हूँ ,
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उलझने हैं बहुत... सुलझा लिया करता हूँ , फोटो खिंचवाते वक़्त मैं अक्सर... मुस्कुरा लिया करता हूँ , क्यूँ नुमाइश करूँ मैं, अपने माथे पर शिकन की, मैं अक्सर मुस्कुरा के इन्हें.. मिटा दिया करता हूँ, क्योंकि.. जब लड़ना है खुद को खुद ही से, हार-जीत में इसलिए कोई फ़र्क नहीं रखता हूँ। हारूं या जीतूं कोई रंज नहीं, कभी खुद को जिता देता हूँ, कभी खुद से जीत जाता हूँ.....! ज़िंदगी तुम बहुत खूबसूरत हो, इसलिए मैंने... तुम्हें, सोचना बंद और.... जीना शुरू कर दिया है...।
कौन हो तुम....
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कौन हो तुम......??? सत्य, मिथ्या या तथ्य..... कौन हो तुम.....??? ज्ञान, अज्ञान या भ्रम..... कौन हो तुम.... की जिसने इंसानों को रचा है, या वो जो रचा गया है विचारो से । कौन हो तुम.... जो कण कण में है, या वो जो भय में है। कौन हो तुम..... मेरी समझ से बाहर हो, या हो सबकी समझ से परे। कौन हो तुम....??? में रोज निकलता हूं, दूर जाने को तुमसे पर पता नहीं चलते चलते जब थक जाता हूं, लगता है तुम बुला रहे हो, वहीं उस वक्त, मुझे छाव बनकर। पर जब पूछता हूं तुमसे कि कौन हो तुम.... तुम क्यों नहीं बताते सामने आकर सबको, जो पूजते है तुम्हे हर तरह से, कि कौन हो तुम.....??? सत्य, मिथ्या या तथ्य कौन हो तुम.....??? ज्ञान, अज्ञान या भ्रम